Instruction : सारा संसार नीले गगन के तले अनंत काल से रहता आया है। हम थोड़ी दूरी पर ही देखते हैं क्षितिज तक, जहाँ धरती और आकाश हमें मिलते दिखाई देते हैं । लेकिन जब हम वहाँ पहुँचते हैं, तो यह नज़ारा आगे खिसकता चला जाता है । और इस नज़ारे का कोई ओर-छोर हमें नहीं दिखाई देता है । ठीक इसी तरह हमारा जीवन भी है। जि़ंदगी की न जाने कितनी उपमाएँ दी जा चुकी हैं, लेकिन कोई भी उपमा पूर्ण नहीं मानी गई, क्योंकि जि़ंदगी के इतने पक्ष हैं कि कोई भी उपमा उस पर पूरी तरह फिट नहीं बैठती । बर्नार्ड शॉ जीवन को एक खुली किताब मानते थे, और यह भी मानते थे कि सभी जीवों को समान रूप से जीने का हक है। वह चाहते थे कि इंसान अपने स्वार्थ में अंधा होकर किसी दूसरे जीव के जीने का हक न मारे । यदि इंसान ऐसा करता है, तो यह बहुत बड़ा अन्याय है । हमारे विचार स्वाभाविक रूप से एक-दूसरे से मेल नहीं खाते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं होता कि हम दूसरों को उसके जीने के हक से वंचित कर दें । यह खुला आसमान, यह प्रकृति और यह पूरा भू-मंडल हमें दरअसल यही बता रहा है कि हाथी से लेकर चींटी तक, सभी को समान रूप से जीवन बिताने का हक है। जिस तरह से खुले आसमान के नीचे हर प्राणी बिना किसी डर के जीने, साँस लेने का अधिाकारी है, उसी तरह से मानव-मात्र का स्वभाव भी होना चाहिए कि वह अपने जीने के साथ दूसरों से उनके जीने का हक न छीने । यह आसमान हमें जिस तरह से भय से छुटकारा दिलाता है, उसी तरह से हमें भी मानव-जाति से इतर जीवों को डर से छुटकारा दिलाकर उन्हें जीने के लिए पूरा अवसर देना चाहिए । दूसरों के जीने के हक को छीनने से बड़ा अपराध या पाप कुछ नहीं हो सकता ।(From Ques 21 to Ques 25)
Question
21
:
आसमान हमें दिलाता है
1. साथ-साथ रहने का अनुशासन 2. भय से छुटकारे का आश्वासन 3. भयभीत न करने का आग्रह 4. रक्षा करने का वचन
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Instruction : रिक्शे पर मीरा के साथ हँसती-बोलती ॠतु घर पहुँची | सीढ़ीयाँ चढ़ने लगी तो कुछ झगड़ने की आवाज़े सुनाई दी | ऊपर पहुँची तो देखा, दोनों आजू-बाजू वाली पड़ोसनें झगड़ रही थीं | अपने दरवाज़े के पास खड़ी होकर उसने कुछ देर उनकी बातें सुनीं तो झगड़े का कारण समझ में आया | एक की महरी ने घर साफ़ करके कचरा दूसरी के दरवाज़े की ओर फेंक दिया था, इसी बात का झगड़ा था | ॠतु ने दोनों को समझाया-बुझाया | आख़िरकार कचरा फेंकने वाली महरी को बुलाया गया | उसने झाड़ू थामी और कचरा सीढ़ी की ओर धकेल दिया | फिर वह महरी अंदर चली गई | दोनों पड़ोसनों ने भी अंदर जाकर अपने-अपने दार बंद कर लिए | ॠतु खड़ी-खड़ी देखती रही | जो सीढ़ी पहले से ही गंदी थी वह और भी गंदी हो गई | रेत का तो साम्राज्य ही था | कहीं बादाम के छिलके पड़े थे तो कहीं चूसी हुई ईख के लच्छे; कहीं बालों का गुच्छा उड़ रहा था तो कहीं कुछ और | मन वितृष्णा से भर उठा | सोचा, इस सीढ़ी से चढ़कर सब अपने घर तक आते हैं, इससे उतरकर दफ्तर, बाजार आदि अपनी इच्छित जगहों पर जाते हैं, पर इसे कोई साफ़ नहीं करता | उलटे सब इस पर कचरा फेंक देते हैं | साझे की सीढ़ी है न ! गंदगी बिखेरने का हक सबको मिला है और साफ़ करने का कर्तव्य किसी का नहीं है | स्वच्छता तो जैसे अनबुझी तृष्णा हो गई |(From Ques 26 to Ques 30)
Question
26
:
अनुच्छेद का सन्देश है
1. स्वच्छता सबका कर्तव्य 2. हसते-बोलते रहना 3. पड़ोसिनों का धर्म 4. कामवाली का उत्तरदायित्व
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